क्या पृथ्वी के अलावा भी कोई ऐसा ग्रह है जहां जीवन संभव है? क्या वर्षों से चली आ रही एलियंस की कहानी सच है? ये एक ऐसा सवाल है जो खगोल वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना हुआ है. इस सवाल के जवाब के लिए खगोल वैज्ञानिक रात-दिन खोज कर रहे है. खगोलीय खोज की इस कड़ी में वैज्ञानिकों को चौकाने वाला एक सहसयमई सिंग्नल मिला है जिससे वैज्ञानिको की नींद उड़ गई है
क्या है रहस्यमई निग्नल राज?
ब्रह्मांड में क्या-क्या रहस्यमयी चीजें मौजूद हैं इसका पता लगा पाना इंसानों के लिए बहुत ही मुश्किल है. हजारों वर्षों से इस पर खोज चल रही है और कब तक चलती रहेगी इस का कोई अंदाज़ा नहीं है. आधुनिक इस दौर में खगोलिय वैद्यानिकों ने अनेको ऐसे उपकरण बनाये है जो खगोलिय खोज में बहुत मददगार है. इसमें दुनिया का सबसे शक्तिशाली रेडियो टेलीस्कोप, लो फ़्रीक्वेंसी एरे भी है जिसके माध्यम से वैज्ञानिक सौर्यमंडल के बहार से आने वाली रेडिओ किरणों की डिटेकट करते हैं. जिससे पता लगाया जा सके की पृथ्वी के अलावा भी ब्रह्मांड में कहीं जीवन सभव है या नहीं ?
इस पर खोज कर वैज्ञानिकों बड़ी सफलता हाथ लगी है. हाल ही में यानि 12 अक्टूबर को दुनिया का सबसे शक्तिशाली रेडियो टेलीस्कोप, लो फ़्रीक्वेंसी एरे ने एक साथ 19 रेडियो सिग्नल को डिटेक्ट किए हैं. जो किसी दूसरे ग्रह से आये हुए है. इस पर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों की मानें तो रेडियो टेलीस्कोप ने अलग-अलग ग्रहों से आने वाले सिग्नल्स को डिटेक्ट किया है. यह पहली बार हुआ है जब खगोलीय खोज में एक एक्सोप्लैनेट से रेडियो तरंगों का पता लगाने में कामयाबी हाथ लगी है
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय की टीम के अनुसार, सभी संकेत पृथ्वी से 165 प्रकाश वर्ष तक लाल बौने सितारों से आए हैं और चार सिग्नल्स ऐसे हैं जिनकी स्टडी से अनुमान लगाया जा रहा है कि ये ग्रह छिपे हुए हो सकते हैं. डच नेशनल ऑब्जर्वेटरी के विशेषज्ञों की टीम ने नीदरलैंड में स्थित शक्तिशाली रेडियो टेलीस्कोप, लो फ़्रीक्वेंसी एरे के जरिए एक साथ 19 सितारों से सिग्नल प्राप्त किए हैं. अलग-अलग ग्रहों से आने वाले सिग्नल्स की स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों और खगोलविदों का कहना है कि, शक्तिशाली रेडियो तरंगों का उत्सर्जन कई ग्रह करते रहते हैं और उनके चुंबकीय तरंगे हवाओं के साथ फैलते रहते हैं. इसी तकनिकी के आधार पर खगोलिय खोज में ये बड़ी सफलता प्राप्त हुई है.
क्या कहते है खगोलीय वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों ने कहा है कि, रेडियो सिग्नल्स मापने का जो हमारे पास मॉडल है वो मॉडल बृहस्पति ग्रह और आईओ वाला है जिसमें एक ग्रह एक तारे के चुंबकीय क्षेत्र में घिरा हुआ है जिससे विशाल चुंबकीय धाराएं प्रवाहित होती हैं. साथ ही जिसकी वजह से काफी शक्तिशाली औरोरा का निर्माण होता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि, ‘यह एक ऐसा रहस्य है जो प्रकाश वर्ष दूर से हमारा ध्यान को आकर्षित किया है.’ वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि, हमने सिग्नल डिटेक्ट करने में भले ही कामयाबी हासिल कर ली है लेकिन अभी इस सिग्नल से काफी कुछ जानकारियां हासिल करना बाकी है और जिन ग्रहों की तरफ से सिग्नल मिले हैं अब उन ग्रहों को दूरबीनों से देखने की कोशिश की जाएगी. इसके अलावा और उन ग्रहों की भौगोलिक संरचना को समझने की कोशिश किया जाएगा
`इस पर अध्ययन करने वाले लीडेन विश्वविद्यालय के डॉ जोसेफ कॉलिंगम ने कहा कि टीम को विश्वास है कि ये रेडियो सिग्नल्स सितारों की चुंबकीय कनेक्शन की वजह से आ रहे हैं, जो अलग-अलग सितारों की परिक्रमा कर रहे हैं. ये कुछ उसी तरह का हो सकता है, जैसे बृहस्पति की कक्षा में घूमने वाले उनके चंद्रमा. वैज्ञानिक डॉ. जोसेफ कॉलिंगम ने कहा कि, ”हमारी अपनी पृथ्वी के पास भी औरोरा (चमक) है, जिसे आमतौर पर यहां उत्तरी और दक्षिणी रोशनी के रूप में पहचाना जाता है. जो शक्तिशाली रेडियो तरंगों को भी उत्सर्जित करता है. यह सौर हवा के साथ ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र के बीच में कनेक्शन बनाता है